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रौदी के राज / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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के जानेॅ कोन दिन भोरकोॅ सुर्जोॅ रं
अन्हार रूपी पानी केॅ चारेी केॅ बहरैली
के जानेॅ कहिया सें असकरोॅ राही रं
सूना रास्ता पर डहरैली धरती
बिना जिरैने कोन देश जाय छै?
के जानेॅ कहिया ऊ थकती?
लेकिन आय साफ-साफ झलकै छै
रौदी सें झमैलोॅ लाल मूँ
सुखलोॅ थूकोॅ सें चरकोॅ ठोर,
घामें-घमजोर।
लागै छै मुहों के लार
आयच्कोॅ तावोॅ में सुखलोॅ जाय छै
आ धरती तबासली जाय छै
केन्हें कि आय काँहूँ छाहुर नै छै
सागरो छै रौदिये के राज!