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रौद छेकै या आगिन / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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है तपासलोॅ दिन
हे प्यासलोॅ रौद
जे नद्दी, पोखर, कुइयां के पानी पीला के बादो
धरती के पेटो के पानी पीयै लेॅ चाहे छै
तहीं सेॅ तेॅ खेतोॅ मेॅ जहाँ-जहाँ
दरार पड़ी गेलोॅ छै।

जबेॅ रौदे के ई हाल छै
तबेॅ की होतेॅ होतै
जंगल-पहाड़ पर
पानी लेॅ टौव्वैतेॅ बड़ो-बड़ोॅ जानवर
शेर आरो हाथी के।

आदमी के कण्ठ तेॅ
रेगिस्तान के अगम कुआँ होय गेलोॅ छै
बूंद-ूंद लेॅ बेचैन
वै पर आगिन बरसैतेॅ सूर्य
आगिन लहरैतेॅ हवा
एक दिशोॅ सेॅ नै
चारो दिशोॅ सेॅ
खेतोॅ, मैदानोॅ, घरोॅ मेॅ दौड़ै छै साँप
गर्मी से उखविख।

लेटलोॅ छै भैंस आरो कुत्ता
संगे-संग सुखलोॅ रं कीचड़ मेॅ
मछली के आखरी ठोर घोॅर
जरी गेलोॅ छै,
ई ग्रीष्म की ऐलोॅ छै।