भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लंगड़े की दुनिया भी लंगड़ी है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
लंगड़े की
दुनिया भी
लंगड़ी है
ज़िन्दगी एक
कड़वी-कड़वी है
(रचनाकाल : 06.10.1965)