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लंबे सफर के बाद / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
आखिर मैं खुद को पा गया लंबे सफर के बाद,
मैं अपने घर को आ गया, लंबे सफर के बाद
पर्वत में गुनगुना रहा पानी के राग सा
झरना जो, मुझको भा गया, लंबे सफर के बाद
इतना तपाया ख़ून को, आँसू को, स्वेद को
खुद बदली बनके छा गया, लंबे सफर के बाद
तूफान एक जो उठा सागर की गोद से
तटबंध सारे ढा गया, लंबे सफर के बाद
भूखा अनादि काल का, भटका डगर-डगर
भिलनी के बेर खा गया, लंबे सफर के बाद