लगन / चंद्रप्रकाश देवल
झेली है जद सूं थारै नेह री पतरी
बिखौ फेरा खावण नै तड़फा तोड़ै
बांधण नै आड़ौ लेवै कांकण-डोरड़ा
नीं मांनूं तौ मन चिगरौ करै
म्हनै नीं सदै
करड़ा जीव में कंवळी नादारी री बातां
फेर जिगवेदी रै चारूं मेर
विजोग रौ पसर्यौड़ौ गळियारौ
अर आसंग बायरा पग
इण दरसाव सूं आंख्यां मींचूं
के पळ-छिन पळपळाट करै मोड़-सेवरा
बदिल रौ मिजाज कैवै
अजमाय नै देख
साफा रौ छिणगौ मोरां थापी दे
हूंस री घोड़ी हिणहिणावती
मतै ई नाचण पग काढै
अळखावणी रातां बण जावै जांन माडांणी
खदबदती पीड़ कैवै
हाल लगन अळगा
उडीक
वा बिछ्योड़ी है जिकी थारै सपनै
सुख-सेज कोनीं
धकली जूंण री अंगणाई है
रमतां-खेलतां जठै लाधै
अेक सबद अटोपण री मागा
जिणरौ अरथ थूं सावळ नीं जांणै
पण आवगी उमर
जिणनै अंतस री डाबी लुकायोड़ौ राख
इळा ज्यूं अळगै सूं काढै
सूरज रा गेड़ा
अै गेड़ा फेरा नीं बाजै
लवल्या छौ
लगन उडीक।