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लगातार पल-पल समय चल रहल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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लगातार पल-पल समय चल रहल बा
रूक रह के घोड़ा ई, मुसकिल कहल बा

इहाँ कोई अहथिर ना धरती पर आके
समय सबके साथे करत छल रहल बा

ई तन मोम जइसन बनावल गइल बा
जरत बाती जइसन गिरत गल रहल बा

नियति के नियम से बन्हल बा जगत ई
सूरूज आसमाँ में उगल, ढल रहल बा

पता ना कहाँ साँस कब रोक जाई
तमन्ना हृदय में तबो पल रहल बा

भइल द्वेष-ईर्ष्या से मन सबके पागल
अहंकार से तन-बदन जल रहल बा

सभे शक्ति के होड़ में हड़बड़ाइल
महानाश के ई घड़ी टल रहल बा