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लगा रखती हो बातों में हमें तुम, जैसे बच्चा हूँ / आनंद खत्री

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वफ़ा-ए-ज़िन्दगीमुझसे समझना, और समझाना
खबर ले कर हमी से, फिर से हमको और उलझाना

लगा रखती हो बातों में हमें तुम, जैसे बच्चा हूँ
फ़क़त इस बचपने में, मुस्कराकर और सुलगाना

बला हो तुम भी कैसी, काजलों संग ख़ुशनुमा गजरे
हमारे, शौकत-ए-माज़ी काओंठो पे यूँ गदराना

नशेमन, मेरे कांधे सर टिका कर के, सजाना फिर
गुनाह-ए-हाल पर फिर से मोहब्बत में चले आना

सरल कर देना मुझको, मेरी उलझन में गले लगकर
गुदाज़-इ-इश्क़ की बाँहों में फिर सपने से फुसलाना

बहुत हैं दांव लगते, वस्ल, पेंच-ओ-ख़म तुम्हारा है
मशक़्क़त था तुम्हारे साथ में उस रात सो जाना

हूँ पच्चिस साल से ज़िन्दा, महज़ उस एक लम्हे में
दहर से दूर हैं रिश्ते हमारे, ग़श नही खाना