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लघुत्तम है उसका अस्तित्व / केदारनाथ अग्रवाल

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लघुत्तम है उसका अस्तित्व

जिसे कोई नहीं जानता

महत्तम है उसकी ग़रीबी

क्षितिज तक फैली छायाओं के सामान

जिसे सब जानते हैं

चलते और कुचलते


(रचनाकाल : 06.10.1965)