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लचिका रानी / खण्ड 3 / अंगिका लोकगाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तीसरा खण्ड

रम्मा लचिका छोड़ी गेलै जबेॅ पोखरियो रे ना
रम्मा महीना दिन के छेलै लड़कबो रे ना
रम्मा लचिका केॅ हरि केॅ लै गेलै लक्ष्मीपुर के रजबो रे ना
रम्मा हठबा के पैलकै फलवो रे ना
रम्मा बालक पर होलै प्रभु के किरपबो रे ना
रम्मा बची गेलै लैके बदलबो रे ना
रम्मा कुलोॅ में बचलै एक फतींगबो रे ना
रम्मा घरोॅ में लै खातिर नममो रे ना
रम्मा छुटी गेलै जबेॅ अम्माओ रे ना
रम्मा पालन पोषन करै तबेॅ दादियो रे ना
रम्मा बालक बढ़ेॅ लागलै दिने-दिनमो रे ना
रम्मा जैसें बढ़ै छै दूजोॅ के चनमो रे ना
रम्मा दादी घरलकै बालक पर असरबो रे ना
रम्मा नाम घरलकै ऐकरोॅ रणबीरवो रे ना
रम्मा थोड़े रे समय में होलै तैयरवो रे ना
रम्मा पढ़ी-लिखी होलै होसियरवो रे ना
रम्मा एक दिन खेलै लेॅ गेलै गुल्ली डण्टवो रे ना
रम्मा संगोॅ में पाँच-छः लड़कवो रे ना
रम्मा खेले-खेलोेॅ में किरियाबो रे ना
रम्मा हरदम खैते रहेॅ बापोॅ के किरियावो रे ना
रम्मा है सुनी वोलै एक लड़कबो रे ना
रम्मा झूठे तों खाय छैं बाप के किरियावो रे ना
रम्मा कहियै नी मरलोॅ छौ तोरोॅ बापो रे ना
रम्मा वही नौरंग पोखरिया उपरवो रे ना
रम्मा तोरोॅ माय केॅ हरि केॅ लै गेलो छौ रजवो रे ना
रम्मा तहियो नहीं तोरा लजवो रे ना
रम्मा लड़का सिनी के सुनी बचनमो रे ना
रम्मा दौड़लोॅ ऐलोॅ रणवीर घरबो रे ना
रम्मा ददीयाँ सें कहलकै बचनमो रे ना
रम्मा सुनोॅ दादी हमरोॅ अरजवो रे ना
रम्मा सच-सच तों कहोॅ हलवो रे ना
रम्मा कहाँ पर मरलोॅ छै हमरोॅ बपबो रे ना
रम्मा हमरा बतावोॅ सब हलवो रे ना
रम्मा नहीं तों बतैभौ सच बतियो रे ना
रम्मा गर्दन पर मारी कटरियो रे ना
रम्मा तेजी देवौ हम्में परनमो रे ना
रम्मा नहीं तेॅ कहोॅ सच-सच बतवो रे ना
रम्मा रणवीर के सुनी बतियो रे ना
रम्मा कहेेॅ लागलै प्रीतम सिंह के मतवो रे ना
रम्मा कहै में फाटै मोरा छतियो रे ना
रम्मा मुहोॅ सें नहीं निकलै बतियो रे ना
रम्मा सुनोॅ बबुआ सब बतियो रे ना
रम्मा माय तोरोॅ हमरोॅ पुतौहुओ रे ना
रम्मा कैसें कहियौ उनकर दुरगतियो रे ना
रम्मा महिना दिन के छैले तों बलकवो रे ना
रम्मा तोरोॅ माय कहलकौ एक बचनमो रे ना
रम्मा जैवै हम्में पोखरिया असननमो रे ना
रम्मा नहीं मानलकौ कहनमो रे ना
रम्मा पोखरिया पर करि केॅ गेलौ हठबो रे ना
रम्मा वहाँ बैठलोॅ छेलै लक्ष्मीपुर के रजवो रे ना
रम्मा लैकेॅ साथें सेनमो रे ना
रम्मा जाय केॅ घेरी लेलकै पोखरियो रे ना
रम्मा बाबू तोरोॅ सुनलकौ खबरियो रे ना
रम्मा लेलकौ सजाय केॅ पलटनमो रे ना
रम्मा हुवेॅ लागलौ घमासान लड़ैयो रे ना
रम्मा बाप-दादा के गेलौ जनमो रे ना
रम्मा करिकेॅ लै गेलौ माय के हरनमो रे ना
रम्मा लै गेलौ आपनोॅ भवनमो रे ना
रम्मा कहाँ तक बतैय्यो दुरगतियो रे ना
रम्मा कहै में फाटै मोरा छतियो रे ना
रम्मा रणबीर पूछै ददियाँ सें पापी रजवा के ठिकनमो रे ना
रम्मा हमरा बताय दे ऊ रजवा के नाम ठिकनमो रे ना
रम्मा एतना सुनी ददियाँ समझावै रे ना
रम्मा मानी लेॅ बबुआ हमरोॅ कहनमो रे ना
रम्मा बड़ा बलशाली ऊ रजबो रे ना
रम्मा नहीं पारबे होकरा सें कभियो रे ना
रम्मा तबेॅ बोलै कुंवर रणवीरवो रे ना
रम्मा हौ दादी जनम के तिरियवो रे ना
रम्मा घर में बैठलोॅ पीन्ही केॅ चुड़ियो रे ना
रम्मा दादी मर्द के हाँसतौ पगड़ियो रे ना
रम्मा नाहक के लेलियै जनममो रे ना
रम्मा देवै हम्मू डुबाय केॅ खनदानमो रे ना
रम्मा दादी कहेॅ लागलै सब हलवो रे ना
रम्मा लक्ष्मीपुर के ऊ रजवो रे ना
रम्मा होकरोॅ नाम जयसिंह रजवो रे ना
रम्मा दुश्मन के मिललै ठिकनमो रे ना
रम्मा कुंवर भेलै वहाँ से रवनमो रे ना