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लडकी देखना / वासुदेव सुनानी / दिनेश कुमार माली

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रचनाकार: वासुदेव सुनानी

जन्मस्थान: मुनिगुडा, जटगड,नुआपाड़ा

कविता संग्रह: अनेक किसि घटिबारे असि (1995),महुल बण(1998),अस्पृश्य (2002),करड़ि हाट ( 2005), छि: (2008), कालिआ उवाच (2010)


क्या जरूरत मुँह पर पाउडर लगाने की
पसीने के लिए इत्र की
जब ऐसी चंचलता हो शरीर के रोम-रोम में,
बलुई मृदा में प्रस्फुटित होते
चाकुंडा पेड़ के नए पत्तों की तरह

सारे सपनें
साकार होते दिखते
जैसे ही लड़की देखने की खबर मिलती
दुनिया में सब स्वाभाविक
लड़की की उम्र तीस साल
शादी के बाजार में बीतती उम्र
पीठ पर चलते केंचुए की तरह

पास की दुकान से सुनाई पड़ने वाले
हिंदी सिनेमा के हिट गीत या
पड़ोसी घर की भीड़ के असहनीय कोलाहल में
कुछ भी सुनाई नहीं देना

जैसे- जैसे समय पास आता जाता
उसके मुख का तेज निखरता जाता
छाती में गाम्भीर्य, कमर में कोमलता,
पाँवों में नम्रता
आँखों में चपलता
धीरे- धीरे प्रकाशित करती जाती
घर द्वार पड़ोस परिजन
सारा परिवेश
और सँभाल नहीं पाती लड़की
नाचने लगती
माँ की चोंच में तिनका देखकर
नए नए पैर निकलते नवजात चिड़िया की तरह
फुदक ने लगती
छोटी छोटी पोखारियों में पानी देखकर
आषाढ़ की ब्राह्मणी मेंढकी की तरह
समय पार होते ही सब समाप्त  !

अब कहो, लड़की का इस तरह
उत्फुलित वेश देखकर
किस भाई-भाभी में
वास्तव में कहने का साहस होगा -
इस बार भी बहाना करके
लड़के वालों ने धोखा दे दिया
लड़की को देखने के लिए
लड़का नहीं आया ।