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लड़की / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
भीतर-भीतर भीगी लड़की
ऊपर कितनी सख्त है!
सबकी नजर बचाकर वो
रखती है सब पर कड़ी नजर,
सारे ड़र वो लांघ चुकी
बस एक अकेला अपना डर!
जिसे बहारों ने लूटा हो
ऐसा एक दरख्त है!
अपनी परछाई पर रीझी
फिदा इस कदर अपने पर,
दाँव लगा देगी वो सारा
जीवन अपने सपने पर!
सबसे माया-मोह छोड़
वह अपने पर अनुरक्त है!