Last modified on 17 मई 2015, at 11:23

लता-गुल्म / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

तुलसी - ने फूल फूल क रुचि विशद श्यामा तुलसी-गाँज
कहओ तदपि तनिकहि पुजय दीप लेसि धनि साँझ।।36।।

पान - मह - मह फूल वितान, ने गमगम फल अछि लदल
केवल पाते पान, रसिक अधर रङि अछि सफल।।37।।

अमरलत्ती - ने जड़ि ने फल-फूल, पता न पात क, डाँट टा
किन्तु भाग्य समतूल, अमर-लती अछि वैह टा।।38।।