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लदिया किनारे मे हरी हरी दुब्भा / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लदिया<ref>नदी</ref> किनारे में हरी हरी<ref>हरे-हरे</ref> दुब्भा<ref>दूब; एक प्रसिद्ध घास</ref>, गैया चरि चरि आबै हे।
कारी ऐसन गैया सिलेबी<ref>कुछ कुछ लाल रंग लिये हुए</ref> ऐसन लेरुआ<ref>गाय का बच्चा</ref>, दूध पिऐ हरी हरी हे॥1॥
खेलिए धूपिए लड़ै ले<ref>लड़ने के लिए; लाड़ला</ref> आबै कवन साहू, बैठि गेलो दादा अगोरी<ref>प्रतीक्षा करना; नजदीक में स्थिर होकर बैठना; अगोरना</ref> हे।
सोने के सेहला गढ़ाव मोरे दादा, काहे गढ़ाव मोतीचूर हे॥2॥
तोरो ससुर जी के साँकरि गलिया, झड़ि जैतो सेहला के फूल हे।
आगु आगु जैतो बाबा के घोड़िया, तहि पीछू अम्माँ अकेलि हे॥3॥
सातो बहिनिया चलऽ हमर साथ, चुनि लेलऽ सेहला के फूल हे॥4॥

शब्दार्थ
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