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लम्बा सफर सें केन्हौं घबराय तों नै जइयोॅ / अमरेन्द्र
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लम्बा सफर सें केन्हौं घबराय तों नै जइयोॅ
अपनोॅ संगोॅ रोॅ साथी ठहराय तों नै जइयोॅ
वादा करै छोॅ तोहें आबै के-अइयोॅ निश्चित
मीट्ठोॅ वचन सें खालीं बहलाय तों नै जइयोॅ
जों देव विश्वनाथे काशी रोॅ तोहें छेका
विषनाथ होय डसै लेॅ सिखलाय तों नै जइयोॅ
जेठोॅ रोॅ तमतमैलोॅ सूरज छौं आबैवाला
पानी बचैलेॅ राखोॅ कुम्हलाय तों नै जइयोॅ
रेशम पटोरी नांखी जिनगी संजोगलेॅ छी
बातोॅ के मार दै दै मसकाय तों नै जइयोॅ
कत्तेॅ जुआन देतौं आपनोॅ जुआनी तोरा
अपनोॅ जुआनी देखी पगलाय तों नै जइयोॅ
पद पाबी एंठबोॅ जुठबोॅ केकरा होलै बरक्कत
आगिन पझाय जैतौं उधियाय तों नै जइयोॅ
अपनोॅ गजल सुनाय केॅ अपनोॅ बनाय लै छै
अमरेन्द्र लुग भले ही ऊ जाय, तों नै जइयोॅ
-4.10.91