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लम्मी रात-सी दर्द फ़िराकवाली / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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लम्मी रात सी दर्द फ़िराकवाली
तेरे कौल ते असाँ वसाह करके
कौड़ा घुट्ट कीती, मिट्ठड़े यार मेरे !
मिट्ठड़े यार मेरे ! जानी यार मेरे !
तेरे कौल ते असाँ वसाह करके
झाञ्जराँ वाङग, ज़ंजीराँ झणकाईआँ ने
कदी पैरीं बेड़ीआँ चाईआँ ने
कदी कन्नीं मुन्दराँ पाईआँ ने
तेरी ताङ्घ विच पट्ट दा मास दे के
असाँ काग सद्दे, असाँ सींह घल्ले
रात मुकदी ए यार, आँवदा ए
असीं तक्कदे रहे हज़ार वल्ले
कोई आया ना बिना ख़ुनामियाँ दे
कोई पुज्जा ना सिवा उलाहम्याँ दे
अज्ज लाह उलाहमे, मिट्ठड़े यार मेरे !
अज्ज आ वेहड़े ! विछड़े यार मेरे !
फ़जर होवे ते आखीए बिसमिल्लाह
अज दौलताँ साडे घर आईआँ ने
जेहदे कौल ते असाँ वसाह कीता
उहने ओड़क तोड़ निभाईआँ ने