भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ललना / ककबा करैए प्रेम / निशाकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ललना
आब नहि रहलि
असूर्यप्श्या
ओ किसिम-किसिमक खेल खेलइए
कम्पनी चलबैए
नीति बनबैए
देस चलबैए।

ललना
डाँड़ सक्कत कऽ ठाढ़ अछि
ओ पुरुषक मजबूरी नहि
खगता बनि गेलि अछि।