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ललमटिया / ज्ञानेन्द्रपति
Kavita Kosh से
न तो गोरी-चिट्टी मुल्तानी मिट्टी
न बाबा की मिथिला की चन्दनवर्णी धूल
यह तो झारखण्ड की ललमटिया है
जिसका रंग बस नामशेष
ललमटिया हुई है कलमटिया
भूतल में जब से दमका है कोयले का अकूत भंडार
उनकी लालची आँखों में
कटे पेड़, ज़मींदोज हो कोयलाने की सम्भावना से दूर
बिलाए विनम्र मवेशी, उद्धत पशु, शोरीले पंछी सारे
चिंग्घाड़ती घूमतीं उत्खनक मशीनें कितनी
दाँतेदार बुलडोजर
गर्दन निकाले, जिराफ़ों को बौना करने वाली क्रेने
चहुँ ओर पेटू ट्रकें चौड़े पंजर की
और फेफड़ों तक को करियाती काली धूल
काली धूल- जिसके भीतर से अनदिखती भी
बस अपने नाम में टिमकती है ललमटिया।