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लहँगा बेसाहन चललन कवन दुलहा / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लहँगा बेसाहन<ref>खरीदने</ref> चललन कवन दुलहा, पएँतर<ref>पाँतर, प्रान्तर, दूर तक सुनसान मार्ग</ref> भेल<ref>हो गया</ref> भिनसार हे।
हँसि पूछे बिहँसि पूछे, सुगइ, कवन सुगइ, कहाँ परभु खेपिल<ref>बिताई</ref> रात हे॥1॥
आम तर<ref>आम के नीचे</ref> रसलों<ref>आनंद मनाया, रस लिया</ref> महुइआ<ref>महुआ</ref> तर बसलों, चंपा तर खेपली रात हे।
काली कोइल कोरा<ref>गोद में</ref> पइसि सुतलों, बड़ा सुखे खेपली रात॥2॥
डाँढ़े डाँढ़े<ref>डाली-डाली</ref> पसिया<ref>पासी; एक जाति विशेष, व्याध, चिड़ीमार</ref> कोइल बझवले<ref>बझाया, फँसाया</ref> पाते पाते<ref>पत्ते पत्तेे पर</ref> कोइल छपाए<ref>छिपती है</ref> हे।
जइसन पसिया रे उदवसले<ref>दुःख दिया, चैन से बसने नहीं दिया</ref> हम जएबो आनंद बन हे।
ओहि रे आनंदबन अमरित फल खएबों, बोलबों<ref>बोलूँगी</ref> गहागही<ref>गहगह, उल्लास से भरा हुआ</ref> बोल हे॥3॥

शब्दार्थ
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