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लहास गन्हेलाक बाद / नारायण झा

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गन्हकि उठल, गन्हकि उठल
कथीक गंध, कथीक गंध?
माल -जालक गंध
की कोनो आनक?
गन्हकि उठल
लहासक गंध।

सूत-सूत जोड़िया
बूनल गेल, छानल गेल पेनी
ओ सूत निसभेर नीने रहि गेल
कूलर आ ए.सी. त'र
नीन नहि खुजल
शहरक चोन्हियबैत इजोत मे
शहरक खेल-बेल मे
रिझले रहि गेल विलासिता मे।

एतय बाट तकैत
मुँह देखबा लेल
खाट धयने
पड़ल-पड़ल
बिनु अन्न, बिनु पानिये
सांस कहुना रहय अड़ल
रट्ट लगबैत रहि गेल
चाकरक रोटी पर
नहि बिलमि सकलैक प्राण
सुनसान बना
चलि गेल श्मशान
असलका बाट सँ
अपन असलका घर
गन्हकि उठल गंध।

मुखाग्नियो पर चिंता
छगुन्ता मे पड़ल समाज
आ समाजक लोक
दुतकारलाक बाद
ए.सी.मे नहि भेटलै टिकट
तकर भयावह नाटक करैत
मुदा समाजक डरें आबि
कोनो तरहें एटेन्ड कयल गेल
कोनो तरहें समय काटि
अपन नाटकक रौल बूझि
संपन्न भेल हुनक काज
जखन गन्हकि उठल
लहासक गंध।