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लाइलाज दरद / लक्ष्मीनारायण रंगा

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(एक चिट्ठी जकी हर हाथ री, हर घर री है)

घर सूं आई है चिट्ठी कै
डाइबिटिक बापू रो
किणी तरियां भरै नहीं है घाव कै
सूंयां भी असर करै नहीं -
(क्यों‘क खरीदण नै पईसा कोनी)
आंख्यां हुवती जावै कमजोर
चिट्ठी भी लिखी पढ़ी जावै नहीं,
बिन पेन्सन वाळी सेवा छूटणै रै बाद
मिळी प्रोविडैन्ट फंड री रासि सूं
इण अपाहिज हालत में
जीवण री गाडी गुड़कावण नै ई
खोली ही दुकान
उणरो सगळो समान
उठग्यो उधार,
कोई भी चुकावण री हालत में कोनी
अर बिना समान री बा दुकान
अब हुयगी बन्द
अर चूल्हो बाळण नै भी कोई
देवै नहीं दियासळाई उधार,
सो ध्यान रैवै
आग समचार है कै
मां रै गोडां रो बरसां बूढ़ौ ट्यूमर
उणनै-उठण कोनी देवै
सगळा केवै कै
बिना इलाज
मां हुयजासी लूली-पांगळी दृ
ध्यान सूं बांचीजै
कंवारी बैन बढ़ती जायरी है ताड़ सी
अर दहेज री मांग बधती जायरी है
काळ में बधतां मोल ज्यूं
लोग कैवै मूूंढामूढ कै
एक सावै भी
आ छोरी रै जासी कंवारी
आ भाग जासी किणीं लुच्चे लफंगे रै लारै
या कर लैसी कुवा खाड
एक समचार ओरूं
छोटोड़ो भाई हुवतो जा रियो है
आवार गर्द कै स्कूल जावै नई’’
चिट्ठी पढ़‘र मनै लागै
जाणै म्हारै मन री गैराई में
कोई तीखी आरी
चीरती चलीगी मन्नै
फेरूं बखत री निरदयी बावां में
हूं हवालै कर दूं खुद नै
पंख नुचियोड़ै लोह लहाण पंछी समान
क्यों‘क
पिताजी रै गैंगरीन रो घाव तो
एक लाम्बै समै सूं
रिस रियो है मवाद म्हारै मन में
मां रै गोडां रो दरद
लाग चूक्यो है
म्हारी जवानी रै पगां में
बैन रै बदन री बधती चांदसी,
छा चुकी है सफेदी बण‘र
म्हारै माथै, मूंढै‘र सरीर पर
भाई री आवारागर्दी
घुळरी है रग रग में
रगत कैंसर सरूप
बढ़ते करज, मैंगाई‘र दहेज रो दरद
चटख रियो है
म्हारी रीढ़ री हड्डी में जिको एक्स रे री पकड़ में भी
कोनी आवै
हूं एक लाम्बी-ठंडी सांस छोड़‘र हुयजाऊं चुप
कै
ए सगळा दरद लाईलाज है