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लाइलाज / चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कुछ नहीं हो सकता अब उसका
शहर के बड़े डॉक्टर ने अब जवाब दे दिया है
लाइलाज हो चुकी बीमारी उसकी
जब से होकर आया गॉव से
मिटटी की गंध
उसके भीतर तक समा गई है
नथुनों से प्रविष्ट गंध
श्वास नली, फेफड़ों, धमनियों से होती हुई
कोशिकाओं में पैठ गई है
अक्सर वह नींद में बड़बड़ाता है
नीम....
पोखर....
गाय.....
गौरैया....
और न जाने कैसे-कैसे शब्द
घोंसला... घोंसला... चिल्लाते हुए
अचानक दौड़ने लगता है बदहवास
कांक्रीट के जंगल में.....