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लाई तेरी महफ़िल में मुझे आरज़ू / ग़ुलाम रब्बानी 'ताबाँ'

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लाई तेरी महफ़िल में मुझे आरज़ू-ए-दीद
 दर-पेश है फिर मरहला-ए-तूर की तजदीद

 मायूस तमन्नाओं को ऐ दोस्त तेरी याद
 जैसे उफ़क़-ए-बीम पे इक अख़्तर-ए-उम्मीद

 ख़ुद अपना क़फ़स बन गई कोताही-ए-परवाज़
 कुछ दूर नहीं वरना जहान-ए-मह-ओ-ख़ुर्शीद

 एक एक अदा शौक़ की तहज़ीब पे माइल
 एक एक नज़र शोख़ी-ए-जज़्बात की तनक़ीद

 जो ख़ुद न समझ पाए वो समझाए तो कैसे
 अफ़्कार में इब्हाम तो गुफ़्तार में ताक़ीद

 जीना भी इबादत उसे पीना भी इबादत
 हासिल हो जिसे चश्म-ए-सियह-मस्त की ताईद

 पिंदार-ए-जुनूँ हो न सका राम-ए-गदाई
 रास आए न 'ताबाँ' मुझे अल्ताफ़-ए-सनादीद