लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
सिर्फ़ रोने से तो कुछ भी नहीं होने वाला 
बार-ए-ग़म गुल है कि पत्थर है ये मौक़ूफ़ इस पर 
किस सलीक़े से इसे ढोता है ढोने वाला 
कोई तदबीर या तावीज़ नहीं काम आती 
हादसा होता है हर हाल में होने वाला 
तू है शायर तुझे हरग़िज न सुहाए रोना 
तेरा हर अश्क है गीतों में पिरोने वाला 
खौल उठता है लहू देख के अपना यारो 
फ़स्ल को काटे न जब फ़स्ल को बोने वाला 
मौत की गोद में जब तक नहीं तू सो जाता 
तू ‘सदा’ चैन से हरग़िज नहीं सोने वाला