भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाख दीया जरलक घर-अगना / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाख दीया जरलक घर-अगना
मन के एक दीया जर न सकल
जिनगी के अन्हर-झक्कर में
ऊ मन के कोनो बात न कह सकल
लाख दिया...

कइसन आन्ही कइसन पानी
कइसन रहे दाहर के पानी
सबके टारइत-टारइत अइली
हौसला हम्मर कम न हो सकल
लाख दिया...

फूल खिलल पत्ताा हरिआएल
रउदा पाकऽ मन हरसाएल
कोयल कुहकल, पपीहा गएलक
हमरा सुर के साज मिल न सकल
लाख दिया...

सांझ भेल सुरूज नुकाएल
चान असमान में इठलाएल
चातक के हए भाग जागल
हम्मर भाग के रात ढल न सकल
लाख दिया...