लाज के निगड़ गड़दार अड़दार चँहु,
चौँकि चितवन चरखीन चमकारे हैँ ।
बरुनी अरुन लीक पलक झलक फूल ,
झूमत सघन घन घूमत घुमारे हैँ ।
रँजित रजोगुन सिँगार पुंञ कुँजरत ,
अंञन सोहन मनमोहन दतारे हैँ ।
देव दुख मोचन सकोच न सकत चलि ,
लोचन अचल ये मतँग मतवारे हैँ ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।