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लाबा भूँजे बैठली कवन अहिबाती / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लावा-भुँजाई की विधि संपन्न करने के लिए ननद बैठी है और ननदोसी आँच लगा रहा है। भाभी अपनी ननद और ननदोसी को इसके लए इनाम देना नहीं चाहती। वह ठीक से लावा नहीं भूँजने का आरोप लगाकर स्वयं ही इस विधि को संपन्न करने को प्रस्तुत है, जिससे ननद-ननदोसी रूठ जाते हैं।

लाबा<ref>अन्न को भूँजने पर उसका खिल उठना</ref> भूँजे बैठली कवन अहिबाती, आँच लगाबै बैठल कवन अनजाती<ref>दूसरी जाति का; दूसरी जाति से उत्पन्न</ref> गे दाय।
आँचो न लहरै लबो न फूटै, माँगे लाबा भुजौनी<ref>लावा भूँजने का पुरस्कार</ref> गे दाय॥1॥
नाहिं हम देबौ लाबा भुजौनी, अपनहिं लेबो भुजाय गे दाय।
रूसल ननदो रूसल ननदोसिया, ठुनकै लागल भगिनमा गे दाय॥2॥

शब्दार्थ
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