भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाल आंख / नन्दल हितैषी
Kavita Kosh से
सिगनल की लाल आँख
अधिक डरावनी हो गई
’भुई’ तक को भरभराती हुई
गुजर गई है ’राजधानी’
फुसफुसाने लगे थे / खिड़की के चौखट तक।
रेडियो ने मल्लाहों को दी है
वैधानिक चेतावनी
कि ’वे समुद्र में न जायें’
एक सौ बीस की गति से गुजरेगा तूफान
..... और इस बन्द कमरे में
कुछ अधिक तेज है / पेन्डुलम की साँसें
सिर्फ़ ’पुलीस’ की सीटियाँ जाग रही हैं,
कर्फ्य़ू की यह रात
पूरा शहर बन गया है, छावनी
निश्चय ही कल के अखबार में,
विज्ञापित होगी परम्परा
’स्थिति तनावपूर्ण
किन्तु नियंत्रण में’
चलेंगे कद्दू पर तीर के तीर
..... और अगली सुबह
सीटियाँ चौराहों पर गला साफ़ कर रही थीं,
रेल की पटरी से गायब थी
कुछ ’फिश प्लेटें’
सिगनल की आँखों के / डोरे भी
टूट चुके थे
और..... पेण्डुलम को
लकवा मार गया।