भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाल आसमान हो गइल होई / तैयब हुसैन ‘पीड़ित’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाल आसमान हो गइल होई,
रात के जान जब गइल होई।
का पता भूख खा गइल या कि
जरावल गइल दहेज बिना,
शमा परवाना के कहानी में
साँच बलिदान हो गइल होई।
काल्ह शंबुक के हो गइल फाँसी
आज बाली मरा गइल होइहँन,
ऊ जे हरिजल के गाँव लहकत बा
राम के आन हो गइल होई।
आदमी पर लगल बा पाबंदी
भेड़िया घूम रहल बा छुट्टा,
अब त सउँसे शहर प बा शामत
उनकर आवान हो गइल होई।
फेर खतरा बढ़ल हुकूमत पर
कौम हलकान कर दिहल जाई,
कबर शिवालय अउर मस्जिद में
देव-स्थान हो गइल होई।
खाद-पानी बनल खुद तबहूँ
हाथ आइल ना एक दाना जब
अब के हरवाह बो रहल हथियार
खबर मलिकान हो गइल होई।