भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाल कर देबो तोरा रंग डाल के / सिलसिला / रणजीत दुधु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाल कर देबो तोरा रंग डाल के
तनि रगड़े दा रंग आउ गुलाल के।

भिंग जइतो तोर फहफह उजरी साड़ी
जइसी पोरवो रंग भर-भर पिचकारी
याद करवा जिनगी भर तों इ साल के
लाल कर देबो तोरा रंग डाल के।

असरा कहिया से लगल हल इ दिन के
काट रहलुँ हल समइया गीन-गीन के
ढेरो दिन रखला हमर इच्छा टाल के
लाल कर देबो तोरा रंग डाल के।

परेम के रंग में ऐसन डुबइवो हम
तोर जिनगी के सभे गम भुलइबो हम
बदल के रख देवो तोहर चाल के
लाल कर देबो तोरा रंग डाल के।

होलिका दहन करबइ भरसटाचार के
सिखइबइ लूर बुद्धि सभे बेकार के
अब दिल में न´ रहे देम मलाल के
लाल कर देबो तोरा रंग डाल के।