भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाल तुम भाजत हो क्यों आज / कमलानंद सिंह 'साहित्य सरोज'
Kavita Kosh से
लाल तुम भाजत हो क्यों आज ॥
खेलि लेहु फगुआ अब मोसे तजि सब डर ओ लाज ।
बूझि परै गो तबही तुम को कैसो नारि समाज ॥
ब्रज युवती वृषभानु सुता की सखी साजि सब साज ।
पकड़ि रंग में यों बोरोंगी उड़िहैं होस मिजाज ॥
आई हों लै कुमकुम रोरी भरि झोरी एहि काज ।
बदलो सब दिन को ‘सरोज’ अब लैहों हो ब्रजराज