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लास / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
न्यूजर्सी
पहुंचने की खुशी में
धूप
घने जंगल को
चमका रही है।
मैं
धूप के खुले मंच पर
एक लास देख रहा हूँ
और नदी
और जंगल
धूप के साथ
भरतनाट्यम की
संगत कर रहे हैं।
-आज हड़सन तट पर टीना यह बता रही है कि सोमवार 13.7.09 को हम टैक्सी से जाएंगें। वहां मुझे टी.वी. पर कविता सुनानी है और वह मुझसे बातचीत करेगी।