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लिखा दिल पे जब दर्द का हर्फ़ पिघले / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
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लिखा दिल पे जब दर्द का हर्फ़ पिघले ,
बग़ावत की लौ से तभी ज़र्फ पिघले !
अगर बह न निकले वो सैलाब बन कर ,
तो आँखों में क्यूं दर्द की बर्फ़ पिघले !
नहीं मोम-सा दिल भरोसे के क़ाबिल ,
न जाने तरफ किस ये कमज़र्फ पिघले !
असल चीज़ रहबर ये बे पे से क्या हैं ,
कि पिघले अलिफ जब तो हर हर्फ़ पिघले !
ख़ुदगर्ज़ लोगों से भी मिल के देखो ,
पड़े धूप शायद कि कुछ बर्फ़ पिघले !