भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखिए केदार नूर मियाँ की गुमशुदगी की रिपोर्ट / दीपक जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे अच्छे से याद है
जब मेरे पैरों में मोच आती
तो हमारी अम्मा हमें उम्मत चाची के पास ले जाती
चाची बेहद जिंदादिल थी
अपने छोटे छोटे पैरों से हर रोज़ कोसों चलती
उम्मत चाची के पास जादुई हाथ थे
मेडिकल साइंस का म भी नहीं जानने वाली
चाची के कानों में मांसपेशीयाँ
खुद-ब-खुद अपना दर्द बयाँ कर जाती थीं
लेकिन चाची के पास कोई भी ऐसा नहीं था
जिसे वह अपना दर्द कह पातीं।
चाची कभी कभी रोने लगती थी
नहीं जानता क्यों?
तब मैं बहुत छोटा था
उनके आदमी बेहद कमजोर और बीमार थे
उनके बसेरे पर रातों-रात क़ब्ज़ा कर लिया गया था
रात भर चाची के मरद अपनी आख़िरी साँस तक
अपनी मड़ई की लरही पकड़े रहे
और चाची पकड़ी रही अपने मरद का फटा हुआ सर
उनके मरद का खून बहते हुए
पुलिस थाने गया, कोर्ट कचहरी गया
फिर भी उसका बहना नहीं रुका
अंत में बहते हुए वह गांधी के खून में जाकर मिल गया।
जब गाँव मैंने छोड़ा चाची चल नहीं पाती थी
और उनके हाथ से जादू चला गया था।
एक थे नाजिमली चाचा
जो मेरा कपड़ा सिलते थे
उनकी सिलाई मशीन दिन-रात चलती रहती
उनके सिलाई-मशीन के धागे को यदि जोड़ा जाता तो मुमकिन
था कि वह चाँद तक पहुँच जाता
इतनी मेहनत के बाद भी उमरभर चाचा
ज़मीन से पेट दबाकर सोते रहे
उनके पैर सिलाई मशीन पर इतने सहज हो चुके थे
कि कभी-कभी लगता चाचा के पैर मशीन के ही पुरजें हैं
चाचा जब चलते तब भी लगता वह कपड़े सिल रहे हों
उनके पैर काँपते रहते
जवानी के दिनों में वह सुई के छेद से
हाथी निकाल सकते थे
जैसे-जैसे चाचा बूढ़े होते गए उनके चश्मे का नम्बर
मोटा होता गया था
उनकी आँखें अब अक्सर धोखा दे जाती थीं
उनका लड़का जो दूर परदेस में
चाचा की मड़ई के लिए रोशनी लाने गया था
कभी नहीं लौटा
उसके साथ कमाने गए लोग बताते हैं
कि अंतिम बार उसके खून को
जहाँ गांधी का खून गिरा था
उस तरफ जाते देखा था
लेकिन न जाने क्यूँ चाचा को लगता
कि उनके लड़के का खून गांधी की तरफ़ नहीं गया होगा
वह गाँव लौटेगा चाचा से मिलने,यार दोस्तों से मिलने
वह तो गांधी को जानता भी नहीं था।
जब मैं ठीक से बैठना भी नहीं जानता था
तब से हशमत चाचा मेरे बाल काटते थे
उनके बाल रुई की तरह सफेद थे
वे बच्चों से बहुत प्यार करते थे
और हुलिए से मुझे हमेशा चेग्वेरा होने से बचा लेते थे
मेरे मन में बड़ा कौतुहल रहता था कि
हसमत चाचा के बाल आख़िर कौन काटता होगा?
मेरे दादा से वे ऐसे मिलते जैसे
बरसों पुराना बिछड़ा कोई दोस्त मिला हो
जबकि वे लोग हर दूसरे दिन मिलते
वे अपने परिवार में अकेले थे
हमेशा हँसते रहते थे
लेकिन जब कोसों दूर कहीं कोई दंगा होता
तब उनकी आँखे बड़ी उदास हो जाती थीं
उनका चेहरा बहुत भारी हो जाता
वो लोगों से फिर कम बोलने लगते
बाबा से मिलकर किसी
अपने छोटे भाई नूर को याद कर बहुत रोते थे
बूढ़े हशमत मियाँ