भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखे कर्म मेटन की तै उस कै भी हाथ नहीं सै / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्ता- राजा कहता है कि जब तक तू सवा रुपया नहीं देती तब तक यहां पर मुर्दा नहीं फूंका जा सकता। एक दिन तूं भी मुझे घड़ा उठवाने से इंकार कर गई थी। आज मेरा भी मौका है इतनी बात सुनकर रानी रुदन मचाने लगती है। तो राजा क्या कहता है-

क्यूं रोवै मदनावत रानी मेरे बस की बात नहीं सै
लिखे कर्म मेटन की तै उस कै भी हाथ नहीं सै।टेक

मैं नोकर सूं काले का ना एक मिनट की छुट्टी
जुल्म करे विश्वामित्र नै मेरी धन माया लुटी
बेमाता भी चाले करगी ना कलम डाण की टुटी
जहर फैलग्या नस नस में कोए दवा लगै ना बुटी
मैं तै भंगी कै घर नीर भरुं मनै सुख दिन रात नहीं सै

जब बाप की जड़ तै पूत बिछड़ज्या जब क्यूकर के हो रै
पूत मरया और कफन मिल्या ना रही केले में लास ल्हको रै
जड़ में बैठ कै रोवण लागी इस कांशी कै गोरै
क्रिया कर्म करै नै बेटे का जै हो सवा रुपया धौरै
ना तै मैं भी मरज्या खुदकशी करकै के आत्म घात नहीं सै

माली के नै फिकर घणा हो फल और फुल लता का
इस बालक नै के सुख देख्या अपने मात पिता का
जै कर मरघट का ले री हो तै करले ढंग चिता का
हुई बोल बन्द क्यूं चुपकी होगी तू इस की मात नहीं सै

अवधपुरी का राज छुटग्या छुटगें ठाठ अमीरी
मेरी पति की काले आगै ना कोए चलती पीरी
मैं नौकर सूं काल का तू सुण ले अर्ध शरीरी
बिना महसूल फूंकै नहीं मुर्दा कहदी बात अखीरी
कह मेहर सिंह बिगड़ी मैं कोए देता साथ नहीं सै।