Last modified on 22 मई 2019, at 16:21

लिख नहीं सकते खड़ी है रेत पर दीवार कैसे / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

लिख नहीं सकते खड़ी है रेत पर दीवार कैसे
कुंद इतनी हो गई है लेखनी की धार कैसे।

रफ़्ता रफ़्ता घट रहा है माद्दा बर्दाश्त का जब
आइये सोचें रुकेगी म्यान में तलवार कैसे।

लाज़मी ये है कि हो हर नागरिक को जानकारी
किसको किसको है लिखा इतिहास ने गद्दार, कैसे।

बाद आज़ादी के दुश्मन जब न थे गद्दी पे क़ाबिज़
अपनी धरती पर हुआ फिर, ग़ैर का अधिकार कैसे।

अब तो बच्चों को पढ़ाना हो गया शायद ज़रूरी
जंग सत्तावन गया था मुल्क अपना हार कैसे।

गांव के हालात ज्यों के त्यों नज़र आते हैं साहब
अआप पहनेंगे बता दें ताज अगली बार कैसे।

फ़िक्र है, 'विश्वास' पहुँचे हर गली कैसे तरक़्क़ी
गोशा-गोशा हंस पड़े, हो कौम का उद्धार कैसे।