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लिख रहा हूँ ज़िन्दगी में / राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

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बाजुवाँ लगती मुझे ख़ामोशियाँ सच्चाई की।
लिख रहा हूँ ज़िन्दगी में तल्खियाँ सच्चाई की॥

भूख से बेहाल बच्चा रो रहा है सड़क पर।
कैसे खिलाती माँ उसे रोटियाँ सच्चाई की॥

क़रीब रहते हुए भी दूर दिल से होने लगे।
नहीं देखने को मिली अब झलकियाँ सच्चाई की॥

झूठ के काँटे बिछे थे फ़ूल के चारों तरफ।
पास कैसे आती अब तितलियाँ सच्चाई की॥

ज़ुल्म होता देखकर भी ख़ामोश है अब तो ख़ुदा।
"राना" फसीं खूब अब तो मछलियाँ सच्चाई की॥