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लिपटी हैं जो पेड़ों से लता और तरह की / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
लिपटी है जो पेड़ों से लता और तरह की
दिखलाती अमरबेल अदा और तरह की
खिलते हैं तबस्सुम से कई फूल चमन में
भँवरों से भी होती है खता और तरह की
ले खुशबुओं का बोझ बहा करतीं हवायें
लाती है खिज़ा है वह हवा और तरह की
उमड़े तो आसमान में बादल हैं हज़ारों
पर प्यास बुझाती है घटा और तरह की
सब भूल माँ के पांव में तू सर को झुका दे
मिल जायगी ममता की दुआ और तरह की
यूँ तो हरेक मर्ज़ की होती हैं दवाएँ
पर मर्ज़े इश्क़ की है दवा और तरह की
एक रोज़ तो जायेंगे सभी मुल्के अदम पर
आती है कई बार कज़ा और तरह की