भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लीम के छईहाँ मा चंदा के बारी मा / शकुंतला तरार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लीम के छईहाँ मा चंदा के बारी मा
फुरफुंदी धरे बर आ जाबे ना
दाई के अँचरा मा ददा के मया मा
फुगड़ी खेले बर आ जाबे ना

अमली के ठौर अउ आमा के मौर मा
घाट घटऊंदा अउ चिरगुन के सोर मा
परसा के फूल मा रे बरसा के चिखला मा
करमा गाये बर आ जाबे ना

बादर के संग-संग मन के चिकारा मा
लहलहावत सोन सही बाली के रंग मा
करिया किसान के झेंझरा कस फरिया मा
मछरी झोरे बर आ जाबे ना

माटी के गंध मा रे होरी के रंग मा
कोयली के कुहू-कुहू अउ खड़पड़ा के सोर मा
दाई के लोरी मा ददा के सपना मा
ददरिया गाये बर आ जाबे ना