मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
लीली घोड़िया बर असबरवा, हाथ सोबरन के साँट<ref>छड़ी</ref> हे सखी।
राति देखल घर मोरे आयल, पेन्हि ओढ़ि धीय जमाइ<ref>बेटी और जमाता</ref> हे सखी॥1॥
औंठी-पौंठी<ref>किनारे, अगल-बगल में</ref> सूतल सारी<ref>साली</ref> सरहजबा<ref>सलहज</ref> पोथानी<ref>पायताने, बिछावन का वह भाग, जिधर पैर रहता है</ref> सूतल नीचे सास हे।
ओते सुतूँ<ref>उधर सोओ, हटकर सोओ</ref>ओते सुतूँ सासु पंडिताइन, लगि जयतो<ref>लग जायगी</ref> पेरवा<ref>पैर</ref> के धूर हे॥2॥
किया तोंहे हउ बाबू सात पाँच के जलमल, किया मलहोरिया<ref>माली</ref> तोहर बाप हे।
नइ हम हिअइ<ref>हूँ</ref> सासु, सात पाँच के जलमल।
हम हिअइ पंडितवा के पूत हे।
मलहोरिया हइ<ref>है</ref> रउरे लगवार<ref>यार</ref> हे॥4॥
अइसन जमइया माइ हम न देखलूँ, रभसि रभसि<ref>विहँस-विहँसकर</ref> पारे गारी हे॥5॥
शब्दार्थ
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