Last modified on 31 जनवरी 2015, at 18:19

लुच्चा सबकेँ पड़ल प्रयोजन / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

लुच्चा सबकेँ पड़ल प्रयोजन।

मौगी सब मर्दाना चाही,
गाम गाममे थाना चाही,
पूर्ण बिलैंती बाना चाही,
रुचिगर फिल्मी गाना चाही।

सदा काँवतर कैंची चाही,
लेन-देन हथपैंची चाही,
टापि छापि हो, गाँज अड़ा हो
नहिं माङुर तँऽ गैंची चाही।

हाथ न कखनहुँ खाली चाही,
भोरे चाहक प्याली चाही,
जठरानल धधकैत रहओ
मुँहमे धरि पानक लाली चाही।

अरसल-परसल थारी चाही,
काज न कोनो भारी चाही,
सीट-साट आ फीट-फाट लय
सबटा माल उधारी चाही।

जान बँचय लय बेढ़ो चाही,
पैघक संग लसेढ़ो चाही,
बरु परोक्षमे गारि पढ़ओ
सोझाँमे मानओ बातक ओजन
लुच्चा सबकेँ यैह प्रयोजन
रचना काल 1970 ई.