भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लूक / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
चम-चम चमक
रही है धूप
गरम हवा की
चलती लूक
भीतर बाहर
आग लगी है
सूख रहा है
खून पसीना
उड़ती है
चौतरफा धूल
रचनाकाल: १६-०६-१९७७, दोपहर : बाँदा