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लुटा कर जान दिलदारी नहीं की / श्रद्धा जैन

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लूटा कर जान दिलदारी नहीं क़ी
ख़ता हम ने बड़ी भारी नहीं की

खुशी से प्यार है मुझ को भी लेकिन
कभी अश्कों से गद्दारी नहीं क़ी

बता के खुद को मुफ़लिस इस जहाँ में
कहीं रुसवा तो खुद्दारी नहीं की

चरागों को बुझाया गम छिपाने
ये सूरज की तरफ़दारी नहीं की

न हासिल थी तरक्की जब शगल में
कभी दिल पर खिज़ां तारी नहीं की

न कहिए मेरी चाहत को हवस यूँ
कोई हसरत भी बाज़ारी नहीं की