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लूटा है मुझे उस की हर अदा ने / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी

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लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
अंदाज़ ने नाज़ ने हया ने

दोनों ने किया है मुझ को रूसवा
कुछ दर्द ने और कुछ दवा ने

बे-जा है तेरी जफ़ा का शिकवा
मारा मुझ को मेरी वफ़ा ने

पोशीदा नहीं तुम्हारी चालें
कुछ मुझ से कहा है नक़्श-ए-पा ने

क्यूँ जौर-कशान-ए-आसमाँ से
मुँह फेर लिया तेरी जफ़ा ने

दिल को मायूस कर दिया है
बे-गाना मिज़ाज-आश्ना ने

दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न
शोख़ी ने कभी कभी हया ने

ख़ुश पाते हैं मुझ को दोस्त ‘वहशत’
दिल का अहवाल कौन जाने