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लेकै रफल मैदान म्हं उतर्या या बात नहीं सै झूठी / दयाचंद मायना

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लेकै रफल मैदान म्हं उतर्या या बात नहीं सै झूठी
छत्तरापन का जोश हुया एक लहर गजब की उठी...टेक

आर्मी के माँ भरती होंगा मन म्हं मान लिया था
आजादी की रक्षा करूं, मैं पक्का जान लिया था
भारत माँ की सेवा करना हृदय ठान लिया था
कुछ माता की शिक्षा थी, कुछ गुरु से ग्यान लिया था
होकै भर्ती होशियार सिंह की होगी शुरू रंगरूटी...

अंधा-धुंध गोली बरसै काबू मैं ना आया
देख वीरता हुशियार सिंह की दुश्मन भी घबराया
पाछै फिरकै देखण लाग्या ना कोए साथ मैं पाया
भारत माँ के लाल पै फेर चीन नै जाल बगाया
डिस्चार्ज से पहले उनकी होगी आखरी छुट्टी...

मरती बरया कहा शेर नै कोए रक्षक भाई आइयो
जो मेरा हमदर्दी साथी मेरी लाश नै ठाइयो
शूरे रण मैं मरा करैं कोए मतना आँसु बहाइयो
सांकोल गाँव का शेर चला मेरा नमस्कार ले जाइयो
अंत समय की मेरी नमस्ते अमृत आली घुंटी...

सांकोल गाँव की नेहरू नै ठा, मिट्टी मस्तक लाई थी
ब्रिगेडियर होशियार सिंह की खूब करी बड़ाईथी
सतघनी फेरां के साथ मैं राष्ट्र धुन बजाई थी
27 नवम्बर बासठ की ‘दयाचन्द’ नै रची कविताई थी
माँ का दूध सफल कर चाल्या पूरी निभाग्या ड्यूटी...