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लेखनी है रमी, आज लिख डालो / अनुपमा पाठक
Kavita Kosh से
आँखों की सकल
नमी... आज लिख डालो!
आसमानी सपने छोड़
दूब जिसको है समर्पित
चरणों के नीचे वो ठोस
जमीं... आज लिख डालो!
कितने ही
प्रवाह में हो सरिता
चुन सारे कीचड़ कंकड़, अपनी
कमी... आज लिख डालो!
अपनी व्यथा
सागर की कथा
शब्दों के उलट-फेर में है
थमी... आज लिख डालो!
अपनी छोटी सी धरती
की कई गहन समस्यायों के
कारण कहीं न कहीं, खुद हैं
हमीं... आज लिख डालो!
जाने कल क्या हो
शायद आज ही कोई जगे-
अपनी बात सुन, लेखनी है
रमी... आज लिख डालो!
संवेदनशीलता पर बर्फ है
जमी... आज लिख डालो!
हवा का अट्टहास
और धरती की पीड़ा,
अश्रुधार से भीगे हृदय की
नमी... आज लिख डालो!