लेडी लिन्लिथगो हॉल / गिरिराज किराडू
उसे देख कर किसी की याद नहीं आती
कि इस तरह उसकी याद आना शुरू होती है
और वह कुछ भी देखकर आ सकती है
जैसे कि नरसंहार के उस पुराने फोटो तक को देखकर
जो बरसों से एक काफपी का पिछला कवर है
नरसंहार का यह फोटो
बहुत ठीक किसी जगह पर
खड़ा हो कर खींचा गया होगा
मारा गया एक भी आदमी इसके फ्रेम से बाहर नहीं
बरसों पता ही नहीं चला यह नर संहार का फोटो है
सिर्फ एक पिछला कवर नहीं
और इस पर लिख दी गई यह मामूली सूचना:
कल शाम सात बजे लेडी लिन्लिथगो हॉल के सामने
अब मानो किसी को याद नहीं कौन थी या कब आई थी
लेडी लिन्लिथगो इस छोटे शहर में
पर उसे तो याद होगा ही?
वह प्रिंस विजयसिंह मेमोरियल अस्पताल के बिल्कुल पिछवाड़े
टी.बी.के मरीजों का वार्ड!
वे मद्धम रोशनियां!
वह उदास कुछ कुछ मनहूस-सा अंधेरा!
हमारे मिलने की वजह!
हम चाय पी रहे हैं, देखो!
कि इस तरह जब भी खोलता हूं किताब
और पढ़ता हूं वॉयसराय लिन्लिथगो
तब भी और किसी को नहीं उसी की याद आती है