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लेहो कवन भैया कान्ह कोदरिया / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बहन द्वारा भाई से पर्वत पर जाकर जोग की जड़ी ला देने का अनुरोध इस गीत में हुआ है।

लेहो कवन भैया कान्ह<ref>कंधे पर</ref> कोदरिया, परबत सेॅ जोग लानी<ref>ला दो</ref> दे रे भैया।
कोरिये<ref>कोड़कर</ref> कारिये बहिनो बान्हलौं मोटरिया, लेहो कवन बहिनो जोग के जरिया॥1॥
कथी<ref>किस चीज पर</ref> पर पीसबै भैया, कथी पर उठैबै, पाटी पर पीसिहऽ बहिनो, बाटी<ref>कटोरा</ref> में उठैहऽ।
पी रे हरामी पूता, जोग के जरिया, पी रे छिनारी पूता, जोग के जरिया॥2॥
हम न पीअब सासू, जोग के जरिया, भागी जायब हमें बाबा नगरिया।
पकड़ी मँगैबऽ हमें कवन भैया हाथें, बान्ह बन्हैबऽ रेसम केर डोरिया॥3॥
मार खिलैबऽ फुलन केर सटिया, बोल बोलैबऽ मुरुगा केर बोलिया।
पी रे हरामी पूता जोग के जरिया॥4॥

शब्दार्थ
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