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ले-लेकर नाम तेरा, कोई दर्द में रोता / तारा सिंह
Kavita Kosh से
ले- लेकर नाम तेरा, कोई दर्द में रोता था
कभी आप ही खुश, कभी आप ही घबड़ाता था
मुहब्बत भी क्या चीज है, भले-चंगों को दीवाना कर
देती है,छाती पीट-पीटकर दरों-दीवारों को सुनाता था
कहता था, मैंने कब चाहा था, उसके कूचे में जाना
वो तो दिले दुश्मन, मुझे, घेर कर ले जाता था
पता कहाँ था गमे-हिज्र1में ताब दिल की खाक उड़ेगी
जब होश में वह आता था ,तब मैं नहीं आता था
जब भी याद करता था निगाहों में उसे
दीदा- ए -शौक को पर लग जाया करता था
1.वियोग का गम