भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ले के जो मंज़िल पे जाये रास्ता कोई तो हो / शोभा कुक्कल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ले के जो मंज़िल पे जाये रास्ता कोई तो हो
रहनुमाई करने वाला नक़्शे-पा कोई तो हो

वो हमारे हक़ में हो चाहे हमारे हो खिलाफ
ऐ ख़ुदा आखिर हमारा फैसला कोई तो हो

अपने बारे में ही सोचे जा रहे हैं नेतागण
देश के बारे में नेता सोचता कोई तो हो

चल रहा है बिन दिशा, बेसम्त अपना काफ़िला
कारवां के इस सफ़र का मुद्दआ कोई तो हो

पेड़ हैं सिहने-चमन में कितने रंगों के मगर
जो तरावत दे नज़र को खुशनुमा कोई तो हो

दागियों की भीड़ है जाती जिधर भी है नज़र
सब यहां खोटे ही खोटे हैं ख़रा कोई तो हो

हम खड़े हैं दिल में लेकर एक दीपक आस का
राह दिखलाने को रहबर रहनुमा कोई तो हो

आते जाते लोग मिलते हैं जहां में बेशुमार
इस जहां में नेक सीरत आप सा कोई तो हो