Last modified on 12 नवम्बर 2009, at 21:27

ले ली जीवन ने अग्नि-परीक्षा मेरी / हरिवंशराय बच्चन

ले ली जीवन ने अग्नि-परीक्षा मेरी।
मैं आया था जग में बनकर
लहरों का दीवाना,
यहाँ कठिन था दो बूँदों से
भी तो नेह लगाना,
पानी का है वह अधिकारी
जो अंगार चबाए,
ले ली जीवन ने अग्नि-परीक्षा मेरी।
अंतरतम के शोलों को था
खुद मैंने दहकाया,
अनुभव-हीन दिनों में मुझको
था किसने बहकाया,
भीतर की तृष्णा जब चीखी
सागर, बादल, पानी।
बाहर की दुनिया थी लपटों ने घेरी।
ले ली जीवन ने अग्नि-परीक्षा मेरी।